परब्रह्म स्वामिनारायण प्रबोधित अक्षरपुरुषोत्तम दर्शन में जगत्कारणत्व, ध्येयत्व और उपास्यत्व की मीमांसा

परब्रह्म स्वामिनारायण प्रबोधित अक्षरपुरुषोत्तम दर्शन में जगत्कारणत्व, ध्येयत्व और उपास्यत्व की मीमांसा

Abstract

प्रायः सभी दर्शनों में और विशेषतः सनातन वैदिक दर्शनों में तत्त्वज्ञान, प्रमाण, साधना और मुक्ति की मीमांसा की जाती है। जिसमें जगत्कारणत्व, उपासना, ध्यान आदि विषयों का चिन्तन किया जाता है; जो बहुत महत्त्वपूर्ण होता है।
परब्रह्म स्वामिनारायण प्रबोधित अक्षरपुरुषोत्तम दर्शन में भी इन विषयों पर बहुत गहन चिन्तन किया गया है। परब्रह्म स्वामिनारायण अपने उपदेशों में जीव, ईश्वर, माया, अक्षरब्रह्म और परब्रह्म – इन पाँच तत्त्वों की नित्यता और भिन्नता प्रतिपादित करते हैं – “पुरुषोत्तम भगवान, अक्षरब्रह्म, माया, ईश्वर और जीव – ये पाँच भेद अनादि है।” इत्यादि।
प्रस्तुत शोधपत्र का विषय है – परब्रह्म स्वामिनारायण प्रबोधित अक्षरपुरुषोत्तम दर्शन में किस तत्त्व का जगत्कारणत्व, ध्येयत्व और उपास्यत्व प्रतिपादित है? इस दर्शन में इन विषयों के परिप्रेक्ष्य में क्या भ्रान्तियाँ हो सकती है? और उन भ्रान्तियों का निवारण क्या हो सकता है? इन विषयों को प्रस्थानत्रयी, परब्रह्म स्वामिनारायण प्रबोधित वचनामृत एवं आनुषंगिक दार्शनिक ग्रंथों से इस शोधपत्र में स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है।

Copyright (c) 2023 The BAPS Swaminarayan Research Journal

How to Cite

Swami Brahmamanandas. (2023). परब्रह्म स्वामिनारायण प्रबोधित अक्षरपुरुषोत्तम दर्शन में जगत्कारणत्व, ध्येयत्व और उपास्यत्व की मीमांसा. The BAPS Swaminarayan Research Journal, 2(1), 123–146. Retrieved from https://r4.devvidya.org/journal/index.php/BSRJ/article/view/02_01_06

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